जिस्म आदमी का क्या है, जिसपे शैदां है जहां ,
एक मिटटी की इमारत, एक मिटटी का मकां.
खून का गारा बना, ईंट जिसमे हड्डियाँ,
चंद श्वासों पर खड़ा है, ये ख्याले आशियाँ।
मौत की पुरजोर आंधी, इससे जब टकराएगी,
देख लेना ये इमारत, ख़ाक में मिल जायेगी।
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गुरुवर सुधांशुजी महाराज के प्रवचनांश