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Sunday, August 22, 2021

Photo from MG Garga

*आज गीता के 15 वेंअध्याय के सार संक्षेप में सद्गुरु ने समझाया की💐 इस संसार वृक्ष को काटकर ब्रह्म तक पहुंचना ही आत्मज्ञानी का लक्ष्य है*  💐
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💐सद्गुरु ने कहा की कर्मों की श्रृंखला के कारण जीव का निरंतर आवागमन हो रहा है संसार एक वृक्ष है जिसका मूल ऊपर है आत्मज्ञानी का ध्येय एक है कि मूल को जानना ,वेद इसमें सहायक हैं ।इस वृक्ष की कोपलें तीन गुणों से युक्त शाखाएं बनती हैं और यही तीनों  गुण है जो कर्म करने की भावना पैदा करते हैं। और मनुष्य उसमें उलझता जाता है *लेकिन वैराग्य के शस्त्र से इसके मूल को नष्ट किया जा सकता है  यह भौतिक पेड़ नहीं है लेकिन यह हमारे शरीर के अंदर है*।

💐ज्ञानेश्वरी टीका भी महाराष्ट्र के घर घर में पढ़ी जाती है और विनोबा भावे ने जेल में रहकर चिंतन करके प्रवचन करते रहे ।कहां कि मनुष्य में परमार्थ की चेतना, भगवान के प्रति होश जाग जाए, यह कार्य वेदों का है *संसार का सार भूत तत्त्व परमात्मा है उसी परमात्मा से हम प्राणवान हैं चेतनावान हैं परमात्मा के प्रति हमारी लगन ज्यादा हो जाए, और संसार के प्रति  लगन कम हो इसका प्रयास करना चाहिए*।

💐प्रकृति साधन है जो सेवा के रूप में प्रयोग की जानी चाहिए, और सेवक है जीवात्मा ।और जिस की सेवा करनी है वह परमात्मा है। *ईश्वर पुरुषोत्तम है जो पुरुषोत्तम को  जान लेगा ,वह सर्व भाव से उसकी पूजा करेगा*। जो साधन उपयोग में लाए जाते हैं, जैसे पत्र, पुष्प, फल वह प्रकृति से ही आते हैं ।वह परिवर्तनशील है इसे दूषण नहीं भूषण माने। इसी तरह जीवात्मा भी नया नया रूप धारण करके प्रकृति का उपयोग करके परमात्मा की पूजा करता है। परिवर्तन के कारण ही प्रकृति सुंदर लगती है। मनुष्य को सेवक हनुमान जी की तरह होना चाहिए ,जो अपने स्वामी श्री राम की सेवा में हाथ जोड़े खड़े रहते हैं।

💐परमात्मा सभी सूर्य , चंद्र,नक्षत्रों में ऊर्जा और प्रकाश देता है विनोबा भावे ने कहा, कि *कर्म और ज्ञान के साथ भक्ति को मिलाओ ।क्योंकि हमें तीनों की जरूरत है जिससे कर्मों का बोझ कम लगने लगता है* इसलिए विज्ञान या कर्म के साथ-साथ भक्ति अवश्य होनी चाहिए ।आप कठिनाइयों को सहते हैं और यही आपका तप है जो आपको परमात्मा के नजदीक ले जाता है ,भक्ति प्रेम के कारण सरलता देती है ,स्वामी रामतीर्थ ने अपनी हिमालय यात्रा में कहा, कि एक पिता अपनी लड़की को कंधे पर लेकर जा रहा था और कहा कि यह बोझ नहीं है यह मेरी लड़की है।

💐योगी अरविंद ने भी कहा कि प्रकृति भी मेरा ही रूप है इसे अपरा भी कहते हैं जीव शरीर को छोड़कर परमात्मा में मिलने का ही साधन करता है परंतु एक बात यह भी है कि *हम परमात्मा के अंश हैं लेकिन उसके टुकड़े नहीं। क्योंकि वह एक अखंड सर्वव्यापी है उसका टुकड़ा नहीं हो सकता*। जीवात्मा परमात्मा में निवास करता है ,लेकिन उसमें लय नहीं हो सकता। इसमें जीव का अस्तित्व बना रहता है वह उसका भोक्ता बना रहता है।

💐अपरा प्रकृति का रूप है जगत, और परा ,निज, अव्यक्त ,सत ,चित, आनंद का रूप है जीव को जरूरत है अपरा, प्रकृति से अपने को छुड़ा लेना, मुक्त कर लेना, जिसे वैराग्य कहते हैं ।तब वह पुरुषोत्तम तक पहुंचता है जीव आंशिक रूप से उस पुरुषोत्तम के गुण वाला है *जीव सत ,चित है परंतु परमात्मा सत ,चित ,आनंद है उसे प्राप्त करना ही उसका लक्ष्य है*
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दिनांक 22 अगस्त 2021
संकलनकर्ता रविंद्र नाथ दिवेदी पुणे मंडल
क्रमशः🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏