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Wednesday, September 19, 2007

गीता--- सार

  • न यह शरीर तुम्हारा है , न तुम शरीर के हो ! यह अग्नि , जल वायु , पृथ्वी , आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा ! परंतु आत्मा स्थिर है फिर तुम क्या हो ?

  • तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो ! यही सबसे उत्तम सहारा है ! जो इसके सहारे को जानता है वह भय , चिन्ता शोक से सर्वदा मुक्त है

  • जो कुछ भी टू करता है ,उसे भगवान को अर्पण करता चल ! एसा कराने से सदा जीवन -मुक्त का आनन्द अनुभव करेगा !

    ॐ नमो भगवते बासुदेवाय नम: