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Monday, December 10, 2012

patra


Sudhanshuji Maharaj Fan
रमात्मा को देखना तुम्हे कठिन है ,
क्योंकि उसे पाने के लिए पात्र को तैयार
करना पड़ेगा ! उसे सम्हालने के लिए तुम्हे
तैयार होना पड़ेगा ! गुरु को देखना आसन
है , क्योंकि गुरु मध्य की कड़ी है! वह कुछ
तुम जैसा है और कुछ तुम जैसा नहीं ! अगर
तुमने वही देखा , जो तुम जैसा है तो तुम
कहोगे , क्या है , एक आदमी-हमारे
जैसा ही ! क्यों पूजे ? क्यों चरणों में सर
झुकाएं ? किसको समर्पण करें ? क्यों करें ?
क्या है खूबी ? हमारे जैसा ! अगर तुमने
वही देखा , जो तुम्हारे जैसा है --
जो की है -- और अगर तुम उसे देखोगे
तो तुम दुसरे हिस्से को न देख पाओगे ,
जो तुम्हारे जैसा नहीं है ! जो
तुम्हारे जैसा है उसको तो बाद में देखोगे ,
जो तुम्हारे जैसा नहीं है ! और जो तुमने
खोज की , प्रेमपूर्ण खोज की तो तुम जल्द
ही गुरु में में वह पा जाओगे , जो तुम्हारे
जैसा नही है , बस , फिर संबंध बना और गुरु
को तुम सह पाओगे , क्योंकि वह आध
तुम्हारे जैसा है ! और वह तुम्हारी तरफ
हाथ बड़ा सकता है और तुम्हे सहारा दे
सकता है !
परमात्मा की खोज में गुरु बीच का पड़ाव
है ! सीधे यात्रा तुम कर न पाओगे ! बीच के
पड़ाव में तुम्हे विश्राम मिलेगा ! और बीच
के पड़ाव में तुम तैयार हो जाओगे आगे
की यात्रा के लिए ! गुरु पाथेय है ! गुरु
भोजन है ! वह तुम्हे तैयार कर देगा ! एक
दिन तुम भी उसी जगह पहुँच जाओगे ---
'सतगुरु नूर तमाम '---- जहां तुम भी नूर
हो जाओगे ; प्रकाश ही प्रकाश
हो जाओगे !