| पिता ही धर्म है,,पिता ही स्वर्ग है और पिता निश्चय ही सर्वोत्कृष्ट तपस्या भी है..पिता के तृप्त संतुष्ट हो जाने पर सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हो जाते हैं...जिसकी सेवा व सद्गुणों से माता-पिता संतुष्ट रहते हैं,,उस पुत्र को प्रतिदिन गंगा स्नान का फल प्राप्त होता है..माता सर्वतीर्थमयी है और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप है...इसलिए सब प्रकार से माता-पिता की सेवा-पूजा करनी चाहिए..."पद्म पुराण" |