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Saturday, March 27, 2010

धर्मं

धर्म है क्षमा, धर्म है धैर्य, धर्मं है दमन करना, धर्मं है सत्य को अपनाना,धर्मं है क्रोध से बचना. इन सब को जो अपना लेता है, वो शील युक्त होता है. जो शील से युक्त होता है, उसके पास सदा सुख होता है.

गुरुवर सुधांशुजी महाराज के प्रवचनांश