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Wednesday, February 4, 2009

सत्कर्म






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    नम्बर ४२२

    समाज को हवनकुंड मानकर उसमें अपने सत्कर्मों की आहुति दो ! वे सत्कर्म कई गुना

    बढ्कर आपके पास आयेंगे और आपको सुख देंगे !

    दुर्वचन खोटे सिक्के की तरह हैं, वह तो वापस बोलने वाले के पास ही आ जाता है !

    पूज्य सुधांशुजी महाराज्


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Posted By Madan Gopal Garga to Anand Dhamm Mumbai Maharashtra at 2/04/2009 05:32:00 AM