एक बार गोपीयों ने श्री कृष्ण से कहा कि
हमें अगस्त्य मुनि को भोग लगाने जाना है ।
और रास्ते में यमुना जी आती है ,अब तुम ही
बताओं हम उस पार कैसे जाये ?🙏
तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा ,: जब तुम
यमुना जी के पास जावो , तो उनसे कहना की
अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है । तो हमें रास्ता दे
बस यमुना जी तुम्हें रास्ता दे देगी 🌳🌳
गोपीया हंसने लगी ,ये कृष्ण भी अपने आप को ब्रह्मचारी समझता है ❤️
सारा दिन तो हमारे पीछे पीछे घुमता है ।
कभी वस्त्र चूराता है माखन चुराता है , मटकी तोड़ता है । और ब्रम्हचारी ,?,,,,,,,,,,,,,,🤣🤣
खैर हमें क्या , चलो हम बोल देंगे
फिर गोपीया यमुना जी के पास जाकर बोलती है ;;;;हे यमुना जी , यदि श्री कृष्ण ब्रम्हचारी है , तो हमें रास्ता दे ।🌴🌴🌴🌴
गोपीयोके कहते ही यमुना जी ने तुरंत रास्ता दे दिया । 🤔🤔 गोपीया आच्क्षर्य से भर गई
अब गोपीया अगस्त्य मुनि को भोजन दें दिया , आते वक्त उसने मुनि से कहा
हे मुनीश्वर रास्ते में यमुना जी आती है हम
घर कैसे जायेंगे ? 🤔🤔🙏
तब मुनि अगस्त्य ने कहा ;; जब तुम यमुना जी के पास जाना तो उनसे ये कहना
के मुनि अगस्त्य अजिवन निराहार है तो हमें
रास्ता दे , बस यमुना जी तुम्हें रास्ता दे देगी
गोपीया मन ही मन कहने लगी , अभी तो
सारा भोजन लाई थी । सारा का सारा निगट गये और अपने आप को निराहार कह रहे है
गोपीया वापस चल पड़ी , यमुना जी के पास
आकर कहने लगी , हे यमुना जी अगर
अगस्त्य मुनि अजिवन निराहार है । तो हमें
आप रास्ता दे दिजीए हमें घर जाना है ।
यमुना जी ने भी तुरंत रास्ता दे दिया
ये देखकर भी गोपीयोकी आच्क्षर्य की सिमा न
रही 🤔 ये भी कैसे हो सकता है ।हम ने
अपनी आंखों से देखा ,,,, मुनि को भोजन करते
और वो अजिवन निराहार कैसे ,🤔🤔🤔🤔
इस उधेड़बुन में गोपियां सिधे श्री कृष्ण के
पास गए और आकर वहीं प्रश्न का उत्तर जानने के लिए उस्तुक थे ,🙏🙏🙏🌴🌴🌳🌳🌳
तब भगवान श्री कृष्ण कहने लगे ;; गोपीयों
मुझे तुम्हारे देह से कोई लेना देना नहीं है
मैं तो तुम्हारी प्रेम और भाव को देखकर 😄
तुम्हारे पिछे पिछे घुमता हु ।।
मैं ने संसार को कभी भी वासना से
नहीं देखा ।न भोगा , मैं निराकार , निर्मोही हु
इसलिए यमुना जी ने आपको मार्ग दे दिया ।
दुसरी बात ; मुनि अगस्त्य भोजन करने से पहले वो मुझे भोग लगाते हैं । और उनका
भोजन के प्रति कोई रूचि नहीं होती ❤️
कोई मोह नहीं है ।
उनके मन में ए कताई नहीं होता कि
मैं भोजन कर रहा हूं । या मैं भोजन करु ।
वो तो अपने अंदर रह रहे मुझे भोजन करा रहे होते हैं । इसलिए वो अजिवन निराहार है ।। और इसलिए जो मुझे प्रेम करता है मैं उसका ऋणी हो जाता हूं 🛐🍀🌳🌳🌳🌳
भावार्थ ,की , आंखें देखी भी कभी कभी ग़लत हो सकती है ☝️ हम संसार में रहकर भी
ईश्वर से प्रेम कर सकते हैं । संसार छोड़ कर
नहीं गृहस्थ ही सबसे बड़ा आश्रम है ।।।।🙏
और कहीं मठ पुजा ,वन उपवन आश्रम तिर्थ
जाने की कोई आवश्यकता नहीं है 🌳🍀🙏
संत न छोड़ें संत ई जो कोटी क मिले असंत
चंदन ,भुवंगा बैठीया ,। तहु शितलता न तंजतं
सज्जन को चाहे करोड़ दृष्ट पुरुष मिल जाए
वो अपने स्वभाव को नहीं छोड़ता ।
जैसे चंदन के पेड़ पर ,अनेक सांप लिपटे रहते हैं । फिर भी वह अपनी सितलता नहीं छोड़ता
जय श्री राधे राधे जी 🙏🌷
जो तु सेवक गुरु का , निंदा की तज बान
निंदक नियारे आय तब , कर आदर सनमान